Dahiya Rajput Sanchore
Saturday, 20 February 2021
दहीया राजपुत का जालोर किले से सबंध
जालोर स्थित जालोर का दुर्ग दहियों ने बनवाया था। दहिया राजवंश से जालौर का यह किला आबू के परमारों ने छीन लिया था। पृथ्वीराज चौहान द्वितीय की रानी अजयादेवी दहियाणी ने जांगलू को समृद्धिशाली बनाया। बाद में दहियों से सांखला (पंवार) रायसी ने जांगलू को छीन लिया। यह षड्यन्त्र रायसी तथा दहियों के पुरोहित की मिलीभगत से सफल हुआ। पहले सांचोर भी, जो मारवाड़ में जालौर जिले में है- दहियों का था। वहाँ के अन्तिम दहिया शासक विजयराव से नाडोल (मारवाड़) के चौहान शासक ने सांचोर विजय कर लिया था। अजमेर जिले में सावर और घटियाली तथा मारवाड़ के हरसौर में दहियों का शासन था|
Monday, 20 February 2017
दहिया वंश के गोत्र-प्रवरादि
वंश – सूर्य वंश बाद में ऋषि वंश
गोत्र – गोतम
प्रवर – अलो, नील-जल साम
कुल देवी – कैवाय माता
इष्टदेव – भेरू काला
कुल देव – महादेव
कुल क्षेत्र – काशी
राव – चंडिया-एरो
घोड़ा – श्याम कर्ण
नगारा – रणजीत
नदी – गंगा
कुल वृक्ष – नीम और कदम
पोलपात – काछेला चारण
निकास – थानेर गढ
उपाधि – राजा, राणा, रावत
पक्षी – कबूतर
ब्राह्मण – उपाध्याय
तलवार – रण थली
प्रणाम – जय कैवाय माता
गाय – सुर
शगुन – पणिहारी
वेद – यजुर्वेद
निशान – पंच रंगी
शाखा – वाजसनेयी
भेरव – हर्शनाथ
गोत्र – गोतम
प्रवर – अलो, नील-जल साम
कुल देवी – कैवाय माता
इष्टदेव – भेरू काला
कुल देव – महादेव
कुल क्षेत्र – काशी
राव – चंडिया-एरो
घोड़ा – श्याम कर्ण
नगारा – रणजीत
नदी – गंगा
कुल वृक्ष – नीम और कदम
पोलपात – काछेला चारण
निकास – थानेर गढ
उपाधि – राजा, राणा, रावत
पक्षी – कबूतर
ब्राह्मण – उपाध्याय
तलवार – रण थली
प्रणाम – जय कैवाय माता
गाय – सुर
शगुन – पणिहारी
वेद – यजुर्वेद
निशान – पंच रंगी
शाखा – वाजसनेयी
भेरव – हर्शनाथ
सामान्य जानकारी
इतिहास के झरोखे से
परबतसर के बारे में प्राचीन प्रमाण भी सुरक्षित है।
इस नगर की बनावट बाबत कोई निश्चित तिथि नहीं बताई जा सकती।
कानूनों की बहियो व झ्वरों के युद्ध पुरुषो की यादगीरी और शिलालेखो से विदीत होता है की यह नगर 8वी शताब्दी में दहिया वंश के 19वे राजा सालवाह की राजधानी] के रूप में विख्यात था।
प्राचीन दहियो के राज्यो व ठिकानो और जागीरदारों की सूची में क्रम संख्या 1 पर परबतसर या देरावर, अजमेर, सांभर के पास स्वामी सालवाह का उल्लेख है।
दहिया राजपूतो का और भी कई जगहों पर राज्य था।जिसमे मारवाड़ में मारोठ (जोधपुर), घटियाल व सावरगढ़ (अजमेर) , हरसोर (जोधपुर) , नैणवा (बूंदी) , जालोर व सांचौर व बावतरागढ़ (मारवाड़) , जांगलू (बीकानेर), सहील्गढ़ (अफगानिस्तान) , आदि जगहों पर दहियों के राज्य थे।
दहिया वंश की उत्पति महर्षि दधीचीक वंश के रूप में मानी जाने के ठोस प्रमाण भी उप्ल्ब्थ है।
दधीची के अपनी अस्थियों का दान कर देने पर उनके वंशज दधीचीक कहलाये।
दधीचीक वंश के राजा मेधनाद की पत्नी मासटा से बड़ादानी और वीर बेरीसिंह जन्मा, जिसकी धर्मपत्नी दुन्धा से चच्चदेव उत्पनन हुए।
वि.सं. 1056 में वैशाख आखातीज ई. सन 999 की 21 अप्रैल में दहिया वंश के तत्कालीन परबतसर परगने के शासक राणा चच्चदेव दहिया राजा दुआर निम्रित देवालयों में दहिया वंश की कुलदेवी केवाय माता की मूर्ति स्थापित की गई।
दधीची ऋषि के पुत्र पीपलाद मुनि जिनका पालन दधीची की बहन ने किया।
उन्होंने परबतसर के समीप अपनी तपोभूमि बनाई और दुग्धेश्वर महादेव के स्थापना की।
इन्हीं के नाम से पीपलाद ग्राम हुआ।
इनके बाद इनसे जो संतान हुई उनमें से एक वर्ग शक्तिशाली होने पर अपने आपको शासक कहलाने योग्य बना।
उक्त पुस्तक में लिखीत दहिया शासक वंश के 24वें
शासक देरावर दूसरा राणा उपाधि से अलंकृत होकर प्रसिद्द हुआ।
तब से यह दहिया राजपूत के नाम से पहचाने जाने लगे तथा दूसरा वर्ग पूजा - पाठ, विद्यादान व ब्राहमण व्रती में रहे वो दधीची कहलाये।
इस प्रकार वर्तमान में दहिया राजपूत व दाधीच ब्रहामन एक ही महर्षि के वंशज है।
केवल कार्यो के अनुसार अलग अलग जाती के रूप में पनपे, जिसकी पुष्टि इतिहास में सहज ही प्राप्त की जा सकती है।
दहिया वंशज बहुत बहादुर, पराक्रमी, वीर,दानी एवं धार्मिक विचारधारा के धनी थे।
इसके 30वे राजा चच्चदेव दहिया ने वि.सं
1056 अपने माता पिता की स्मरति में ग्राम किनसरीया की ऊँची पहाड़ी पर केवाय माता का मंदिर बनवाया, जिसकी पुष्टि इस मंदिर के सभा मंडप में स्थापित शिलालेख से आज भी देखि जा सकती है।
इस वंश के 21वें राजा का नाम देरावर था।
उसने अपने नाम से परबतसर के पास देरावरगढ़ बनवाया था, जो आज देवडूंगरी के नाम से पहचाना जाता है तथा इसके आस-पास आज भी दहिया वंश निवास करते है।
कालांतर में देवी-प्रकोप से दहिया वंश के 37 वें राजा इनके शासन के अंत होने के निश्चित प्रमाण दहिया वंशज की यादगिरी के कथानुसार प्राप्त होते है, जिससे दहिया के भानेज जगन्नाथसिंहजी मेडतिया, जब मेडता के राजा थे, जब उन्होंने परबतसर परगना को अपने राज्य में विलय कर लिया था तथा बाद मे जोधपुर स्टेट ने मेड़ता स्टेट को अपने शासन में विलय कर लिया।
तब परबतसर परगना स्वत; ही जोधपुर स्टेट के अधीन आ गया, जो राजस्थान राज्य निर्माण से पूर्व तक रहा।
परबतसर के बारे में प्राचीन प्रमाण भी सुरक्षित है।
इस नगर की बनावट बाबत कोई निश्चित तिथि नहीं बताई जा सकती।
कानूनों की बहियो व झ्वरों के युद्ध पुरुषो की यादगीरी और शिलालेखो से विदीत होता है की यह नगर 8वी शताब्दी में दहिया वंश के 19वे राजा सालवाह की राजधानी] के रूप में विख्यात था।
प्राचीन दहियो के राज्यो व ठिकानो और जागीरदारों की सूची में क्रम संख्या 1 पर परबतसर या देरावर, अजमेर, सांभर के पास स्वामी सालवाह का उल्लेख है।
दहिया राजपूतो का और भी कई जगहों पर राज्य था।जिसमे मारवाड़ में मारोठ (जोधपुर), घटियाल व सावरगढ़ (अजमेर) , हरसोर (जोधपुर) , नैणवा (बूंदी) , जालोर व सांचौर व बावतरागढ़ (मारवाड़) , जांगलू (बीकानेर), सहील्गढ़ (अफगानिस्तान) , आदि जगहों पर दहियों के राज्य थे।
दहिया वंश की उत्पति महर्षि दधीचीक वंश के रूप में मानी जाने के ठोस प्रमाण भी उप्ल्ब्थ है।
दधीची के अपनी अस्थियों का दान कर देने पर उनके वंशज दधीचीक कहलाये।
दधीचीक वंश के राजा मेधनाद की पत्नी मासटा से बड़ादानी और वीर बेरीसिंह जन्मा, जिसकी धर्मपत्नी दुन्धा से चच्चदेव उत्पनन हुए।
वि.सं. 1056 में वैशाख आखातीज ई. सन 999 की 21 अप्रैल में दहिया वंश के तत्कालीन परबतसर परगने के शासक राणा चच्चदेव दहिया राजा दुआर निम्रित देवालयों में दहिया वंश की कुलदेवी केवाय माता की मूर्ति स्थापित की गई।
दधीची ऋषि के पुत्र पीपलाद मुनि जिनका पालन दधीची की बहन ने किया।
उन्होंने परबतसर के समीप अपनी तपोभूमि बनाई और दुग्धेश्वर महादेव के स्थापना की।
इन्हीं के नाम से पीपलाद ग्राम हुआ।
इनके बाद इनसे जो संतान हुई उनमें से एक वर्ग शक्तिशाली होने पर अपने आपको शासक कहलाने योग्य बना।
उक्त पुस्तक में लिखीत दहिया शासक वंश के 24वें
शासक देरावर दूसरा राणा उपाधि से अलंकृत होकर प्रसिद्द हुआ।
तब से यह दहिया राजपूत के नाम से पहचाने जाने लगे तथा दूसरा वर्ग पूजा - पाठ, विद्यादान व ब्राहमण व्रती में रहे वो दधीची कहलाये।
इस प्रकार वर्तमान में दहिया राजपूत व दाधीच ब्रहामन एक ही महर्षि के वंशज है।
केवल कार्यो के अनुसार अलग अलग जाती के रूप में पनपे, जिसकी पुष्टि इतिहास में सहज ही प्राप्त की जा सकती है।
दहिया वंशज बहुत बहादुर, पराक्रमी, वीर,दानी एवं धार्मिक विचारधारा के धनी थे।
इसके 30वे राजा चच्चदेव दहिया ने वि.सं
1056 अपने माता पिता की स्मरति में ग्राम किनसरीया की ऊँची पहाड़ी पर केवाय माता का मंदिर बनवाया, जिसकी पुष्टि इस मंदिर के सभा मंडप में स्थापित शिलालेख से आज भी देखि जा सकती है।
इस वंश के 21वें राजा का नाम देरावर था।
उसने अपने नाम से परबतसर के पास देरावरगढ़ बनवाया था, जो आज देवडूंगरी के नाम से पहचाना जाता है तथा इसके आस-पास आज भी दहिया वंश निवास करते है।
कालांतर में देवी-प्रकोप से दहिया वंश के 37 वें राजा इनके शासन के अंत होने के निश्चित प्रमाण दहिया वंशज की यादगिरी के कथानुसार प्राप्त होते है, जिससे दहिया के भानेज जगन्नाथसिंहजी मेडतिया, जब मेडता के राजा थे, जब उन्होंने परबतसर परगना को अपने राज्य में विलय कर लिया था तथा बाद मे जोधपुर स्टेट ने मेड़ता स्टेट को अपने शासन में विलय कर लिया।
तब परबतसर परगना स्वत; ही जोधपुर स्टेट के अधीन आ गया, जो राजस्थान राज्य निर्माण से पूर्व तक रहा।
दहिया वंश की जानकारी
दहिया राजपूत वंश की एक शाखा हैं, यह शाखा तीन वंश में सम्मिलित हुई है, 1 सूर्यवंश , 2 ऋषिवंश तथा 3 चन्द्रवंश । लेकिन मूलरूप से दहिया वंश ऋषिवंश के अंतर्गत आता है, समय परिवर्तन के साथ रियासतों का विलय होने के कारण इनका पुश्तेनी कार्य परिवर्तित हो गया एवं इनका पेशा ग्राम रक्षा हो गया। राजस्थान के जालोर जिले में दहिया क्षत्रियो के 64 गांव है जिन्हे वर्तमान में दहियावटी के नाम से भी जाना जाता है। राजपूतो के इतिहास पर नजर दोङाई जाए तो राजपुतो के 36 वंशो में दहिया वंश बहुत ही प्रभावशाली वंश रहा है।
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